हम नाहक दुःखी
प्रकृति आनन्दमय
प्रभु आनंद-स्वरूप
पर मानव दुःखी
चूँकि
हो गया भ्रम-मय
भूला आत्मरूप
हो गया महा बाह्यमुखी
चूँकि
हो प्रभु-प्रकृति से विमुख
हो गया लालची-लोलुप
और पा रहा दुःख
और दे रहा दुःख
करो यह अब-सब ...
प्रकृति-घर वापसी
बढ़ाओ प्यार आपसी
बन प्रभु-मानसी
-ललित किशोर
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