It is the birth anniversary of Ramdhari Singh (23 September 1908 – 24 April 1974) today. He has been a noted Hindi poet, essayist, freedom fighter, political activist, patriot and academic of India who has left deep impression on Hindi literature and inspired the common people for collectivization and struggle for freedom from repression and exploitation.
Since his poetry was full of bravery and sacrifice for the nation or 'veer rasa', he was deemed as 'national poet' who was elected three times to the Rajya Sabha.
His poem 'Singhasan Khaali Karo Ke Janata Aaati Hai' had become the anthem of agitations during emergency imposed by late PM Indira Gandhi.
दिनकर जी की कविताएं वीरता, विद्रोह और क्रांति के शब्दों से भरी हुई हैं; व्यक्ति को निराशावाद से आशावाद की ओर ले जाती हैं।
उनकी कविताओं की कुछ यादगार पंक्तियाँ इस प्रकार हैं।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं, / धूसरता सोने से शृँगार सजाती है /
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, / सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।
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पीकर जिनकी लाल शिखाएँ / उगल रही सौ लपट दिशाएं, / जिनके सिंहनाद से सहमी / धरती रही अभी तक डोल / कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा / क्या जाने इतिहास बेचारा, / साखी हैं उनकी महिमा के / सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल / कलम, आज उनकी जय बोल।
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आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जुगाएगा ? / मरभुखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ?
आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं, / पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।
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उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है / सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है
विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिन्तन है / जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है
सबसे स्वतन्त्र रस जो भी अनघ पिएगा / पूरा जीवन केवल वह वीर जिएगा
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समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो / शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे / समतल पीटे बिना समर कि भूमि नहीं छोड़ेंगे
समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर / खण्ड-खण्ड हो गिरे विषमता की काली जंजीर
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