उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने हिंदी दिवस के अवसर पर अपने उदबोधन मैं निम्नलिखित विचार रखे।
भूमिका: आज ही के दिन 1949 में हमारी संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। उसी वर्ष 26 नवंबर को संविधान सभा में अपने समापन भाषण में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस की महत्ता बताते हुये कहा था कि पूरे देश ने पहली बार अपने लिये एक राजभाषा को स्वीकार किया है। जिनकी भाषा हिंदी नहीं भी है उन्होंने भी स्वेच्छा से राष्ट्र निर्माण के लिये उसे राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि हर क्षेत्र न सिर्फ अपनी भाषा का प्रयोग करने के लिये आजाद होगा बल्कि उसे अपनी परंपराओं और संस्कारों की भाषा को विकसित करने के लिये बढ़ावा भी दिया जायेगा। इससे पहले 1946 में हरिजन में अपने एक लेख में गांधीजी ने लिखा था कि क्षेत्रीय भाषाओं की नींव पर ही राष्ट्रभाषा की भव्य इमारत खड़ी होगी। राष्ट्रभाषा और क्षेत्रीय भाषाएं एक दूसरे की पूरक है विरोधी नहीं। हमें याद रखना चाहिये कि गांधी जी ने 1918 में ही तत्कालीन मद्रास में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना की थी और उनके पुत्र देवदास गांधी पहले हिंदी प्रचारक बने।
मुख्य बिंदु
हमें अपनी भाषाई विविधता पर गर्व होना चाहिए। हमारी सभी भाषाओं का समृद्ध साहित्यिक इतिहास रहा है। हमारी भाषाऐं हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं।
न कोई भाषा थोपी जानी चाहिए न किसी भाषा का कोई विरोध होना चाहिए। हर भाषा वंदनीय है। कोई भी भाषा हमारे संस्कारों की तरह शुद्ध और हमारी आस्थाओं की तरह पवित्र होती है।
समावेशी और स्थायी विकास के लिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी ही चाहिए इससे बच्चों को स्वयं अभिव्यक्त करने में और विषय को समझने में आसानी होती है। पढ़ने में रुचि पैदा होती है।
अपनी मातृभाषा का सम्मान करें, रोजमर्रा के कामों में उसका प्रयोग करें।
हिन्दी और देश की भाषाओं का साहित्य पढ़े, उसमें लिखे। तभी हमारी भाषाओं का विकास होगा, वे समृद्ध होगीं।
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