कुदरत के सब बन्दे : द्विपदी कविताएं
- Lalit Kishore
- Aug 27
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कुदरत के सब बन्दे : द्विपदी कविताएं
जग सारा एक है, न कोई हैअलग ,
सब जुड़ा एक रूप, भीतर ही है रब ।
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कोई नहीं पराया यहाँ, कोई नहीं भिन्न,
एक ही चेतना का सब में चिन्ह।
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हर कण जुड़ा, एक ही धारा,
नहीं कोई पराया, सब हमारा।
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मन ने ही गढ़ी हैं दीवारें,
डर, शंका के बादल गहरे।
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मैं और तू बस रूप ही हैं अलग,
एक ही खेल के हैं सारे जग।
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इस बोध को ही साधो तुम, पाओगे सच्ची मुक्ति।
मन के सारे बंधन तोड़ो, मिले परम सन्तुष्टि।




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