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कुदरत के सब बन्दे : द्विपदी कविताएं

  • Writer: Lalit Kishore
    Lalit Kishore
  • Aug 27
  • 1 min read

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कुदरत के सब बन्दे : द्विपदी कविताएं


जग सारा एक है, न कोई हैअलग ,

सब जुड़ा एक रूप, भीतर ही है रब ।

***

कोई नहीं पराया यहाँ, कोई नहीं भिन्न,

एक ही चेतना का सब में चिन्ह।

***

हर कण जुड़ा, एक ही धारा,

नहीं कोई पराया, सब हमारा।

***

मन ने ही गढ़ी हैं दीवारें,

डर, शंका के बादल गहरे।

***

मैं और तू बस रूप ही हैं अलग,

एक ही खेल के हैं सारे जग।

***

इस बोध को ही साधो तुम, पाओगे सच्ची मुक्ति।

मन के सारे बंधन तोड़ो, मिले परम सन्तुष्टि।

 
 
 

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